ऐसा मंदिर जहां साल में रक्षाबंधन पर्व पर एक दिन के लिए खुलते कपाट, क्या है मान्यता, पढ़े पूरी ख़बर।
बदलता गढ़वाल ब्यूरो
जोशीमठ/डॉ. दीपक कुंवर
वंशी नारायण एक ऐसा मंदिर जो साल में केवल एक दिन के लिए खुलता है वह भी पावन पर्व रक्षाबंधन के दिन। वंशी नारायण मंदिर, चमोली जिले की उर्गम घाटी से लगभग 12 किमी दूर व समुद्रतल से लगभग 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
कलगोठ गांव में स्थित, कत्यूर शैली में बने इस मंदिर में भगवान नारायण की चतुर्भुज मूर्ति विराजमान है। दस फीट ऊंचे वंशी नारायण मंदिर के विषय में मान्यता है कि राजा बलि के द्वारपाल रहे विष्णु ने वामन अवतार से मुक्ति के बाद सबसे पहले इसी स्थान पर दर्शन दिए थे।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु के राजा बलि का द्वारपाल बनने से माता लक्ष्मी को अनेक दिनों तक उनके दर्शन नहीं हुए। भगवान विष्णु के दर्शन न होने से परेशान माता लक्ष्मी उनके अनन्य भक्त नारद मुनि के पास गई और नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को पूरी कहानी बताई। तब माता लक्ष्मी ने परेशान होकर नारद मुनि से भगवान विष्णु की मुक्ति का उपाय पूछा। नारद मुनि ने माता लक्ष्मी से कहा कि “वह श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन राजा बलि को रक्षासूत्र बांधें और उपहार में राजा बलि से वामन अवतार रूपी विष्णु की मुक्ति मांगें।
अतः माता लक्ष्मी रक्षाबंधन के दिन राजा बलि के पास गई और राजा बलि को रक्षासूत्र बांधकर भगवान विष्णु को मुक्त कराया। वंशी नारायण मंदिर के संबंध में मान्यता है कि पाताल लोक के बाद भगवान विष्णु सबसे पहले इसी स्थान पर प्रकट हुए थे।
वर्गाकार गर्भगृह वाले वंशी नारायण मंदिर के विषय में एक अन्य मान्यता यह है कि यहां वर्ष में 364 दिन नारद मुनि भगवान नारायण की पूजा करते हैं। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी के साथ नारद मुनि भी पातल लोक गए थे तो इस वजह से केवल उस दिन वह मंदिर में नारायण की पूजा न कर सके थे। इसलिए माना जाता है कि तभी केवल श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन स्थानीय लोग मंदिर में जाकर पूजा करते हैं।
इस प्रकार प्रत्येक वर्ष स्थानीय महिलाऐं वंशी नारायण मंदिर आती हैं और भगवान को राखी बांधती हैं। माना जाता है कि वंशी नारायण मंदिर पांडवों के काल में निर्मित किया गया था।