चिंतन: हरेला को समझना है तो, प्रेम करो अपने आप से, इतना काफ़ी है: डॉ चरण सिंह
बदलता गढ़वाल ब्यूरो,
जोशीमठ।
वर्तमान में जिस तरह से आज पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरण प्रदूषण जैसी बड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं। उसके लिए मानव ही पूर्ण रूप से कहीं न कहीं जिम्मेदार है। आज विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक मात्रबमे दोहन किया जा रहा है जिससे पर्यावरण संतुलन डगमगाया है। हालांकि हरेला को लेकर हर वर्ष पूरे प्रदेश में हजारों की संख्या में पेड़ तो लगाए जाते हैं लेकिन उनकी आगे की जिम्मेदारी भूल जाते हैं। इतना ही नही फोटो और सोशल मीडिया के दौर में वृक्षारोपण सिर्फ फोटो तक सीमित रह गया है। ऐसे में डॉ चरण सिंह “केदारखंडी” को एक शिक्षक है, उन्होंने हरेला को देखने और समझने के लिए एक कविता के माध्यम से बताया है।
*प्रेम करो अपने आप से, इतना काफ़ी है…*
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ज़मीन आसमान का अंतर है
हरियाली के लिए प्रेम
और हरियाली प्रेम के प्रदर्शन में !
गहरे प्रेम का एक सपाट नियम है :
उसे बयां नहीं किया जा सकता
और
किया भी नहीं जाना चाहिए !
इसीलिए तो कहीं अता -पता नहीं है–
हिमालय के निर्माता का
नदियों के विधाता का
जंगल , बुग्याल और सागर के रचयिता का
और उद्घाटन का कोई शिलापट नहीं है
नॉर्वे के आकाश में उत्तरी प्रकाश की तरंगों पर …
अम्लीय वर्षा के इस दौर में
हरियाली की ज़रूरत बाहर कम
भीतर ज़्यादा है दोस्तो !
एक जंगल बोओ अपने भीतर
और बाहर प्रकृति को
बिना तमाशे के अपना काम करने दो…
प्रेम करो सिर्फ़ अपने आप से
जंगल और हरियाली के लिए
इतना काफ़ी है !
*चरणसिंह केदारखंडी, ज्योतिर्मठ हिमालय*