अच्छी ख़बर: मांगल गर्ल ‘नंदा सती’ को संगीत विषय में मिला गोल्ड मेडल।

अच्छी ख़बर: पिंडर घाटी की बेटी मांगल गर्ल ‘नंदा सती’ को संगीत विषय में मिला गोल्ड मेडल।

चमोली।
आज हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में 11वाँ दीक्षांत समारोह ‘सशक्त महिला, समृद्ध राष्ट्र’ थीम के साथ धूमधाम से सम्पन्न हुआ। विश्वविद्यालय द्वारा अपने ग्याहरवें दीक्षांत समारोह में 59 स्वर्ण पदक, 1182 स्नातकोत्तर डिग्रियाँ और 98 पीएचडी डिग्रियाँ प्रदान की गई। विश्वविद्यालय के स्वामी मनमथन प्रेक्षागृह, चौरास में देश की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मु की गरिमामयी उपस्थिति में समारोह का विधिवत् उद्घाटन हुआ। उद्घाटन अवसर पर माननीय राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ,मुख्यमत्री पुष्कर सिंह धामी, कुलाधिपति डॉ योगेन्द्र नारायण, कुलपति प्रो अन्नपूर्णा नौटियाल सहित अन्य अतिथि उपस्थित थे। इस अवसर पर स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले दीक्षार्थियों को माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मु ने गोल्ड मेडल प्रदान किये।

दीक्षांत समारोह में सीमांत जनपद चमोली की पिंडर घाटी के नारायणबगड ब्लाॅक के नारायणबगड गांव की बेटी मांगल गर्ल नंदा सती को महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के द्वारा मास्टर ऑफ आर्ट (संगीत विषय) में गोल्ड मेडल प्रदान किया गया। मांगल गर्ल नंदा सती नें गोल्ड मेडल हासिल करके न केवल गढवाल केंद्रीय विश्वविद्यालय का नाम ऊँचा किया अपितु पहाड़ की बेटियों के लिए नये प्रतिमान भी स्थापित किया है। मांगल गर्ल नंदा सती नें मास्टर ऑफ आर्ट (संगीत) में गोल्ड मेडल हासिल करके ये संदेश दिया है कि आज पहाड़ की बेटियाँ केवल खेत खलिहान, घास लकडी और चूल्हा चौके तक ही सीमित नहीं है। अब वो हर क्षेत्र में आगे बढ रही है और सफलता हासिल करने में सक्षम है। नंदा सती की माँ और पिताजी अपनी बेटी को गोल्ड मेडल से सम्मानित होने के समारोह का हिस्सा बनी और बेटी की सफलता पर खुशी व्यक्त करते हुये कहा कि उन्हें अपनी बेटी पर नाज है। कहती हैं कि हमें खुशी है कि उसने पहाड़ का नाम रोशन किया है। वहीं नंदा सती ने अपनी सफलता का सारा श्रेय अपने माँ पिताजी और शिक्षकों को दिया।

कौन है नंदा सती!

सीमांत जनपद चमोली के पिंडर घाटी के नारायणबगड ब्लाॅक के नारायणबगड गांव की रहने वाली है नंदा सती। नंदा के पिताजी ब्रह्मानंद सती पंडिताई का कार्य करते हैं जबकि मां गृहणी है। तीन बहिनों में नंदा सबसे छोटी हैं जबकि उनका एक छोटा एक भाई भी हैं। प्राथमिक शिक्षा से लेकर 12 वीं की शिक्षा नंदा नें नारायणबगड से प्राप्त की। हेमवंती नंदन केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर से स्नातक और संगीत विषय में स्नाकोत्तर की डिग्री हासिल की है। 22 साल की छोटी सी उम्र में नंदा सती द्वारा गाये जानें वाले मांगल गीतों और लोकगीतों को सुनकर हर कोई अचंभित हो जाता है। मांगल गीतों की शानदार प्रस्तुति पर उनकी लोक को चरितार्थ करती जादुई आवाज और हारमोनियम पर थिरकती अंगुलियां लोगों को झूमने पर मजबूर कर देती है। लोग के मध्य नंदा सती, मांगल गर्ल के नाम से प्रसिद्ध है। यही नहीं हारमोनियम पर उनकी पकड़ वाकई अदभुत है। जिस उम्र में आज की युवा पीढ़ी मोबाइल, मेट्रो और गैजेट की दुनिया में खोई रहती है उस उम्र में नंदा का अपनीं लोकसंस्कृति से इतना लगाव उन्हें अलग पंक्ति में खडा करता है। नंदा नें मांगल गीतों के संरक्षण और संवर्धन के जरिये एक नयी लकीर खींची हैं। भले ही नंदा सती के घर के ठीक सामने बहनें वाली पिंडर नदी में हर दिन लाखों क्यूसिक मीटर पानी बिना शोर शराबे के यों ही बह जाता हो परंतु नंदा के मांगल गीतो की गूंज देश दुनिया तक सुनाई दे रहे हैं। नंदा पहाड के लोक में रचे बसे मांगल गीतों और लोकगीतों के संरक्षण और संवर्धन में बडी शिद्दत से जुटी हुई है।

ये होते है मांगल गीत!

उत्तराखंड में बरसों सें शुभ कार्यों में मांगल गीत गायन की परंपरा रही है। ये मांगल गीत पीढ़ी दर पीढ़ी एक से दूसरे को स्थानांतरित होती रही। यहां के घर गांवो में शादी, जन्मोत्सव, मुंडन आदि जैसे मांगलिक समारोह के दौरान मांगल गीत गाए जाते है। मांगल गीतों में सीख, आशीर्वाद, संस्कार होते हैं। शादी के दौरान अलग-अलग मांगल गीत होते हैं। विदाई के समय जहां माता पिता को ढांढस बंधाने के लिए मांगल गीत गाए जाते हैं। वहीं बारात स्वागत के दौरान माहौल को खुशनुमा करने के लिए मजाकिया अंदाज में रोचक मांगल गाए जाते हैं। इन गीतों को गाने वाली महिलाओं के समूह को मंगलेर कहा जाता है।

गांव के बुजुर्गों से विरासत में मिली मांगल और लोकगीतों की समझ और गुनगुना!

मांगल गर्ल नंदा सती कहती हैं लोकगीत और मांगल गीत हमारी सांस्कृतिक विरासत की पहचान है। लोकगीत पीढी दर पीढी एक दूसरे को हस्तांतरित होते हैं। इनके बिना पहाड़ के लोक की कल्पना करना असंभव है। मैं बहुत ख़ुशनसीब हूँ की मुझे मांगल गीतों की समझ और महत्ता अपने गांव के बुजुर्गों से विरासत में मिली, जो बरसों से इनको संजोते आ रहें हैं।

कोरोना काल में डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिये मांगल और लोकगीतों को हजारों लोगों तक पहुंचाया ..

भले ही कोरोना काल लोगों के लिए दुःस्वप्न साबित हुआ हो लेकिन नंदा सती नें इस कठिन दौर में भी अपनी मांगल गीतों के जरिये लोकसंस्कृति की सौंधी खुशबू को देश विदेश तक हजारों लोगों तक पहुंचाया। नंदा सती नें लाॅकडाउन की अवधि में विभिन्न ग्रुपों, संगठनों, फेसबुक लाइव, इंस्टाग्राम और यूट्यूब के जरिये मांगल गीतों की शानदार प्रस्तुति से हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया था। जिस कारण लोगों को झुकाव अपने पौराणिक मांगल गीतों की ओर हुआ। खासतौर पर युवा पीढ़ी के युवाओं को नंदा की ये अनूठी मुहिम बेहद पसंद आई। नंदा सती बच्चो को हारमोनियम बजाने और मांगल गीतों को गाने की ट्रेनिंग भी देती हैं। कोरोना काल में नंदा नें बच्चों को ऑनलाइन प्रशिक्षण भी दिया।

बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं मांगल गर्ल!

मांगल गर्ल नंदा सती बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। वो न केवल एक बेहतरीन मांगल गायिका है अपितु प्रतिभाशाली छात्रा और खिलाडी भी है जबकि एनसीसी की होनहार छात्राओं में शुमार है।

वास्तव में देखा जाए तो मांगल गर्ल नंदा सती नें अपनी छोटी सी उम्र में मांगल गीतों को सहेजने का जो बीडा उठाया है वो अनुकरणीय तो है ही अपितु नयी पीढ़ी के युवाओं के लिए उदाहरण भी है की कैसे अपनी माटी और जडो से जुडा जा सकता है। नंदा नें उत्तराखंड के मांगल गीतों को एक नयी पहचान दिलाई है इसलिए लोग उन्हें मांगल गर्ल के नाम से जानते हैं।

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