*छोटी होती जा रही ‘टाइगर’ की ‘सल्तनत’।*
बदलता गढ़वाल: *छोटी होती जा रही ‘टाइगर’ की ‘सल्तनत’।*
देहरादून। बाघों के संरक्षण और उनकी वंशवृद्धि के मामले में उत्तराखण्ड देश का सिरमौर राज्य है। इस आकड़े पर हम खुशी जता सकते हैं। इतरा भी सकते हैं लेकिन बाघों की वर्ष 2022 की गणना रिपोर्ट का एक आंकड़ा बेहद चिंताजनक भी है, वो है बाघ के ‘एम्पायर’ का छोटा पड़ना। बाघ एक ऐसा प्राणी है जो राजा के माफिक जीवन व्यतीत करता है। उसका अपना एक इलाका (टैरिटरी) होता है जिसमें वह स्वच्छंद विचरण करता है। अपना साम्राज्य चलाता है और उस इलाके में दूसरे बाघ की आमद को कतई पसंद नहीं करता। अब हो यह रहा है कि पिछले डेढ़ साल में उत्तराखण्ड में बाघों का कुनबा तो तीन गुना बढ़ गया लेकिन उनके लिए संरक्षित क्षेत्र यथावत है यानि प्रत्येक बाघ के लिए उसकी टैरिटरी छोटी पड़ती जा रही है। परिणाम स्वरूप बाघों के बीच आपसी संघर्ष तो हो ही रहा है, अब वो आबादी क्षेत्र में भी आने लगे हैं, जिससे मानव-वन्य जीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। यह पहलू वन महकमे के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रहा है।
बाघ संरक्षण के लिए पूरे देश में जो एरिया संरक्षित घोषित है वो पूरे भूभाग का मात्र 5 फीसदी है। जबकि उत्तराखण्ड में यह आंकड़ा 15 फीसदी है। यानि उत्तराखण्ड के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 15 प्रतिशत भाग बाघों के लिए पूरी तरीके से संरक्षित है। क्षेत्रफल को आधार बनाएं तो बाघों की संख्या 560 होने की वजह से उत्तराखण्ड का बाघ संरक्षण में सर्वोपरी योगदान है। आंकड़ों से साफ है कि भारतवर्ष में कुल 3682 बाघों में से 560 बाघ उत्तराखण्ड में मौजूद हैं। इन 560 बाघों में से कार्बेट टाइगर रिजर्व में 260 बाघ हैं। यह आंकड़ा जितना प्रोत्साहित करने वाला है उतना ही चिंताजनक भी है। वन्य जीव वैज्ञानिकों के मुताबिक बाघ ऐसा प्राणी है जिसकी सबसे बड़ी टैरेटरी होती है। आमतौर पर एक नर बाघ 12 से 15 वर्ग किमी के जंगल को टेरिटरी बनाता है। उसके साथ दो से चार बाघिन रहती हैं। वो अपने अलग और स्वछंद इलाके में रहना पसंद करता है लेकिन उत्तराखण्ड में उन्हें अपना पर्याप्त इलाका नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में उन्हें सामूहिक रूप से जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। भारतीय वन्य जीव संस्थान (डब्लूआईआई) अपनी रिपोर्ट में चिंता जता चुका है कि कार्बेट टाइगर रिजर्व में जो क्षेत्रफल (1288.32 वर्ग किमी) उपलब्ध है उसमें सिर्फ 148 बाघ होने चाहिए जबकि वहां बाघों की संख्या 260 तक पहुंच गई है। कमोवेश, प्रदेश के वनों की भी यही स्थिति है। लगातार बिगड़ रहे पारिस्थिकी संतुलन की वजह से बाघ आपसी संघर्ष कर रहे हैं, जंगलों से बाहर निकल रहे हैं जिससे मानव और उनके बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं। भविष्य में इस चुनौती से पार पाना आसान नहीं होगा।
कार्बेट में बाघों की संख्या –
वर्ष संख्या
2006 160
2010 186
2014 215
2018 252
2022 260
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