*ऋषिकेश: आधुनिक परिदृश्य में भारतीय प्राच्य ज्ञान सम्पदा” विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का हुआ समापन।*

बदलता गढ़वाल न्यूज
ऋषिकेश।

श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय द्वारा “एक विश्वविद्यालय एक विषय” के अन्तर्गत ऋषिकेश परिसर में 02 दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन किया गया, जिसमें देश विदेश के विषय-विशेषज्ञों एवं शोधार्थियों द्वारा बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के मा0 कुलपति प्रो0 एन0 के0 जोशी ने अपने वक्तव्य में कहा कि किस तरह से हमें अपने सभी विषयों के साथ समागम करते हुवे भारतीय प्राचीन परंपरा के अंतर्गत आधुनिक संदर्भ में उसकी उपयोगिता को परिलक्षित करना होगा ।राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा को शिक्षा के केंद्रीय आधार के रूप में शामिल किया गया है। यदि शिक्षा का तात्पर्य मनुष्य को जीवनयापन में सफल बनाना है तो आज तक शिक्षा के क्षेत्र में हमने विलक्षण प्रगति की है किन्तु शिक्षा का उद्देश्य जीवन को सार्थक करना है और भारतीय पुरातन ज्ञान इसी धारणा पर अवलंबित है। चाणक्य ने इस भूमि को चक्रवर्ती भूमि कहा है। प्राचीन काल से ही हमारा देश उच्च माननीय मूल्यों एवं विशिष्ठ वैज्ञानिक परम्पराओं का देश रहा है। भारत की संस्कृति ने विश्व को एक परिवार के रूप में माना है। भारतीय लोग आज भी अपनी परम्परा और मूलों को बनाये हुए है।

मुख्य अतिथि, उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय, देहरादून के कुलपति, माननीय प्रो. ए.के. त्रिपाठी ने कहा कि प्राचीन वेदों और अन्य शास्त्रों में चिकित्सा प्रणाली का उल्लेख किया गया है। चरक साहित्या और सुश्रूत साहित्या जड़ी बूटियों के साहित्य के मुख्य परम्पारिक संग्रह है। आयुर्वेद के द्वारा किस तरह से हमने करोना काल में लोगों के स्वास्थ्य को ठीक किया । उन्होंने गिलोय की उपयोगिता बतायी प्राचीन भारतीयों द्वारा अविष्कृत विचारों और आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिक का मूल आधार को दृढ़ करने में अभूतपूर्व योगदान रहा है। मनुष्य को कैसे कर्म करने चाहिए इसका उल्लेख उपनिषदों से प्राप्त होता है। भारतीय ज्ञान, विरासत, परम्परा एवं शिक्षण पद्वतियों के सनातन मूल्यों को आधुनिक शैक्षिक पद्वति व व्यवस्था में अभिसंचित करना है। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा भारत के सिवा विश्व में कोई देश नहीं है जहाँ आप शान्ति से रह सकें। प्राचीन भारत में दर्शन, अनुष्ठान, व्याकरण, खगोल विज्ञान, अर्थशास्त्र, संख्या सिद्वांत, तर्क, जीवन विज्ञान, आर्युवेद, ज्यौतिष जैसे मानव कल्याणकारी क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित कर मानव जाति की उन्नति में अत्यधिक योगदान दिया है। विभिन्न सांस्कृतिक और परम्परा के लोगों के बीच घनिष्ठता ने भारत देश को बनाया है इसलिये हम कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति वेद, तंत्र एवं योग की त्रिवेणी है। भारतीय ज्ञान परम्परा हजारों वर्ष पुरानी है इस ज्ञान परम्परा मे आधुनिक विज्ञान प्रबंधन सहित सभी क्षेत्रों के लिए अभूतपूर्व खजाना है।

परिसर के निदेशक प्रो0 रावत द्वारा देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, शोध केन्द्रो से संगोष्ठी में पधारे अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा हजारों वर्ष पुरानी है इस ज्ञान परम्परा मे आधुनिक विज्ञान प्रबंधन सहित सभी क्षेत्रों के लिए अभूतपूर्व खजाना है।

सम्मेलन की संयोजिका, संकाय विकास केंद्र की निदेशक प्रोफेसर अनिता तोमर ने कहा कि आधुनिक संदर्भों में प्राचीन भारतीय ज्ञान को जोड़ने पर यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन एक ऐतिहासिक आयोजन है जो समकालीन समय में प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणालियों की प्रासंगिकता और अनुप्रयोग का पता लगाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों और शोधकर्ताओं को एक साथ लाया है। सम्मेलन में तकनीकी सत्रों की एक श्रृंखला आयोजित की गई, जिनमें से प्रत्येक में प्राचीन भारतीय ज्ञान के विभिन्न पहलुओं और इसके आधुनिक प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया गया। कुल मिलाकर 228 प्रतिनिधि ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से हमसे जुड़े। प्रोफेसर तोमर ने कहा कि तकनीकी सत्र-I का विषय विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) में भारतीय ज्ञान प्रणाली था। इस सत्र में एसटीईएम क्षेत्रों में प्राचीन भारतीय ज्ञान के योगदान पर प्रकाश डाला गया। प्रस्तुतकर्ताओं ने गणित में ऐतिहासिक प्रगति पर चर्चा की, जैसे शून्य और दशमलव प्रणाली की अवधारणा, साथ ही खगोल विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में शुरुआती विकास जो आधुनिक विज्ञान और इंजीनियरिंग प्रथाओं को प्रभावित करना जारी रखते हैं। तकनीकी सत्र-II का विषय पारिस्थितिकी और पर्यावरण में भारतीय ज्ञान प्रणाली था। प्रतिभागियों ने पारंपरिक भारतीय पारिस्थितिक प्रथाओं और आधुनिक पर्यावरण संरक्षण में उनकी प्रासंगिकता का पता लगाया। विषयों में टिकाऊ कृषि, जल प्रबंधन तकनीक और जैव विविधता संरक्षण में पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान की भूमिका शामिल है, इन प्रथाओं को वर्तमान पर्यावरण नीतियों में एकीकृत करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। तकनीकी सत्र-III का विषय मानविकी और सामाजिक विज्ञान में भारतीय ज्ञान प्रणाली है। इस सत्र ने सामाजिक संरचनाओं, नैतिकता और शासन पर प्राचीन भारतीय दृष्टिकोण का पता लगाया। चर्चाओं में सामाजिक विज्ञान पर वेदों और उपनिषदों जैसे प्राचीन ग्रंथों के प्रभाव, भारतीय दार्शनिक विचार के विकास और आधुनिक सामाजिक संदर्भों में इसके अनुप्रयोग पर चर्चा की गई। तकनीकी सत्र-IV ऑनलाइन था जो व्यापक भागीदारी और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए आयोजित किया गया था। इस सत्र ने विभिन्न विषयों पर चर्चा की सुविधा प्रदान की, जिससे वैश्विक विद्वानों को अपने शोध प्रस्तुत करने और साथियों के साथ वस्तुतः जुड़ने की अनुमति मिली। तकनीकी सत्र-V का विषय प्रबंधन और अर्थशास्त्र में भारतीय ज्ञान प्रणाली था। विशेषज्ञों ने प्राचीन भारतीय आर्थिक सिद्धांतों और प्रबंधन प्रथाओं पर चर्चा की, जैसे कि अर्थ शास्त्र और राम चरित मानस में पाए जाते हैं। सत्र में प्राचीन व्यापार प्रणालियों, आर्थिक नीतियों और प्रबंधन रणनीतियों को शामिल किया गया, जिनका आज के व्यापार और आर्थिक ढांचे में संभावित अनुप्रयोग है। तकनीकी सत्र-VI का विषय “आयुर्वेद – जीवन का ज्ञान” का अनुवादात्मक ढाँचा था। यह सत्र आयुर्वेद पर केंद्रित था, जिसमें स्वास्थ्य और कल्याण के लिए इसके समग्र दृष्टिकोण की खोज की गई। प्रस्तुतकर्ताओं ने आयुर्वेदिक प्रथाओं के वैज्ञानिक आधार, आधुनिक चिकित्सा के साथ इसके एकीकरण और समकालीन स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने की इसकी क्षमता पर चर्चा की। तकनीकी सत्र-VII का विषय प्राचीन भारत का अंतःविषय ज्ञान था।

इस सत्र में विभिन्न प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणालियों के अंतर्संबंध पर प्रकाश डाला गया।
इसने विज्ञान, दर्शन, कला और संस्कृति के संयोजन वाले अंतःविषय दृष्टिकोणों को प्रदर्शित किया, यह प्रदर्शित करते हुए कि ये एकीकृत प्रणालियाँ जटिल आधुनिक मुद्दों को कैसे संबोधित कर सकती हैं। तकनीकी सत्र-VIII ऑनलाइन था जिसमें प्राचीन ज्ञान को आधुनिक संदर्भों के साथ जोड़ने के व्यापक विषय के तहत विभिन्न विषयों को शामिल किया गया, जिसमें अनुसंधान और नवीन अनुप्रयोगों के विभिन्न क्षेत्रों पर प्रस्तुतियाँ शामिल थीं। तकनीकी सत्र-IX का विषय विज्ञान और मानविकी में पारंपरिक ज्ञान था। इस सत्र में पारंपरिक वैज्ञानिक और मानवतावादी ज्ञान के एकीकरण पर मुख्य व्याख्यान और प्रस्तुतियाँ दी गईं। चर्चाओं में प्राचीन चिकित्सा पद्धतियाँ, दार्शनिक शिक्षाएँ और समकालीन वैज्ञानिक और मानवतावादी अध्ययनों में उनकी प्रासंगिकता शामिल थी। चर्चा किए %9

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