आस्था: कैलाश विदाई के साथ ही नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा का हुआ समापन।
जा मेरी गौरा तू, शिव का कैलाश।
जा मेरी गौरा तू, चौखम्भा उकाली।।
कैलाश विदाई के साथ ही नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा का समापन।
प्रदीप सिंह/बदलता गढ़वाल।
चमोली।
09 सितंबर से शुरू हुई हिमालय की अधिष्ठात्री देवी माँ नन्दा की वार्षिक लोकजात यात्रा का नंदा सप्तमी के अवसर पर नंदा को कैलाश विदा करनें के साथ ही समापन हो गया। अब ठीक एक साल के उपरांत ही नंदा के इस लोकोत्सव का आयोजन होगा। शुक्रवार को हिमालय के उच्च हिमालयी बुग्यालों में श्रद्धालुओं नें पौराणिक लोकगीतों और जागर के साथ हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा को कैलाश के लिये विदा किया। अपनी ध्याण को विदा करते समय महिलाओं की आंखे अश्रुओं से छलछला गयी। खासतौर पर ध्याणियां मां नंदा की डोली को कैलाश विदा करते समय फफककर रो पड़ी। इस दौरान श्रद्धालुओं नें अपने साथ लाये खाजा- चूडा, बिंदी, चूडी, ककड़ी, मुंगरी भी समौण के रूप में माँ नंदा को अर्पित किये। दूसरी ओर बालपाटा बुग्याल में दशोली कुरूड की मां नंदा डोली की पूजा अर्चना करके कैलाश के लिए विदा किया गया।
उच्च हिमालय में स्थित नरेला बुग्याल में सम्पन्न हुई बंड नंदा की लोकजात!
सूर्य भगवान की किरणों और बादलों की लुकाछुपी के बीच सुनहरे मौसम में शुक्रवार को बंड की नंदा की डोली पंचगंगा से चलकर नरेला बुग्याल पहुंची। जहां पर पहुंचे श्रद्धालुओं नें मां नंदा की पूजा अर्चना कर उन्हें समौण भेंट की और माँ नंदा को जागरों के माध्यम से कैलाश की ओर विदा किया गया। इस दौरान पूरा हिमालय मां नंदा के जयकारे से गुंजयमान हो गया।