आस्था: नंदा लोकजात यात्रा का हुआ शुभारंभ, माँ नंदा देवी की डोलियों कैलाश के हुई विदा।

आस्था: हिमालय की आराध्य देवी माँ नंदा देवी की डोली जयकारों के साथ कैलाश के लिए हुई विदा, नंदा राजजात का विधिवत हुआ शुभारंभ।

चमोली।

सिद्धपीठ नंदाधाम कुरुड़ से विश्व प्रसिद्ध नंदा लोकजात यात्रा का आज 9 सितंबर से विधिवत शुभारंभ हो गया। दो दिन के सांस्कृतिक मेले के बाद आज माँ नन्दा की डोलियों हिमालय की ओर विदा हो गई। इस दौरान सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालुओं ने माँ नन्दा के जयकारों एवं जागरों के साथ डोलियों को विदा किया। ये लोकजात यात्रा वेदनी कुंड और बालपाटा में नंदा सप्तमी को संपन्न होगी।

चमोली के नंदा नगर विकासखंड स्थित सिद्धपीठ कुरुड़ मंदिर से मां नंदा देवी की डोली कैलाश के लिए विदा हुई। हर साल आयोजित होने वाली मां नंदा देवी लोकजात यात्रा की शुरुआत सोमवार को वैदिक मंत्रोच्चार एवं विधि विधान के साथ शुरू हुई। इस अवसर पर थराली विधायक भूपाल राम टम्टा ने भी पूजा अर्चना कर अपने क्षेत्र और देश की खुशहाली की कामना की। उन्होंने कहाँ की पिछले दिनों घाट और थराली-देवाल क्षेत्र में हुई अतिवृष्टि से पैदल रास्ते क्षतिग्रस्त हो गए थे, उनको सही करने के लिए निर्देशित कर दिया गया है जिससे परेशानी न हो। आज माँ नन्दा की डोली अपने प्रथम पड़ाव कुमजुग गांव में रात्रि विश्राम के लिए पहुंचेगी। कई पड़ावों को पार करने के बाद मां नंदा की देव डोलियां 22 सितंबर को वेदनी कुंड और बालापाटा बुग्याल में पहुंचेगी। उसके बाद वहीं नंदा सप्तमी के दिन कैलाश में मां नंदा देवी की पूजा अर्चना के साथ लोकजात का विधिवत समापन होगा।

जिसके बाद नंदा राजराजेश्वरी की देव डोली 6 माह के लिए अपने ननिहाल थराली के देवराडा में निवास करेगी। जबकि, नंदा देवी की डोली बालापाटा में लोकजात संपन्न होने के बाद सिद्धपीठ कुरुड़ मंदिर में ही श्रदालुओं को दर्शन देगी ‘नंदा देवी राजजात यात्रा और नंदा लोकजात यात्रा में अंतर बता दें कि 12 साल के अंतराल पर कुरुड़ मंदिर से ही नंदा देवी राजजात यात्रा का आयोजन होता है। जबकि, हर साल नंदादेवी लोकजात यात्रा का आयोजन किया जाता है।

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